वीडियो( #Restless4Change.) को देखकर में सोचता हु ,कि महिला सशक्तिकरण सिर्फ शहरी कामकाजी महिलाओं तक ही सीमित नहीं होना चाहिए ;बल्कि दूरदराज के कस्बों एवं गांवों में भी महिलाएं अपनी आवाज बुलंद कर सके । वे पढ़ी-लिखी हों या ना हों, अब किसी भी मायने में अपने पुरुष समकक्षों से पीछे नहीं रहनी चाहती। अपनी सामजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना वे अपने सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं और साथ ही अपनी उपस्थिति भी महसूस करा सके ।
हालांकि यह भी सच है कि ज्यादातर महिलाओं को अब समाज में बड़े भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन दुर्भाग्यवश अभी भी उनमें से कई को विभिन्न प्रकार के भावनात्मक, शारीरिक, मानसिक और यौन उत्प्रीरणों से दो-चार होना पड़ता है और वे अक्सर बलात्कार, शोषण और अन्य प्रकार के शारीरिक और बौद्धिक हिंसा का शिकार हो जाती हैं।
वह कमजोर है, उसे विनम्र होना चाहिए। उसे ऐसा करना चाहिए ,उसे ऐसा नहीं करना चाहिए चूंकि महिलाओं को सभी धारणाओं और कुंठितों के साथ वातानुकूलित किया गया है ताकि उन्हें कमजोर और असहाय महसूस किया जा सके, जिसने उसे लंबे समय तक अंधेरे में रखा है और परिणामी रूप से कम आत्मसम्मान पैदा होती है। महिला की अंतर्निहित क्षमता और विभिन्न धार्मिक शास्त्रों और रूढ़िवादी दिमाग के गलत व्याख्याओं ने अपने स्वयं के स्वार्थ के कारण समाज में महिलाओं के सम्मान को अपमानित किया है।
सही मायनों में महिला सशक्तिकरण तभी हो सकता है जब समाज में महिलाओं के प्रति सोच में परिवर्तन लाया जा सके और उनके साथ उचित सम्मान, गरिमा, निष्पक्षता और समानता का व्यहार किया जाए। देश के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सामंती और मध्ययुगीन दृष्टिकोण का वर्चस्व है